वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
२१ अप्रैल, २०१८
अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
दोषोऽपि विहितः श्रुत्या मृत्योर्मृत्युं स गच्छति।
इह पश्यति नानात्वं मायया वञ्चितो नरः॥४८॥
भावार्थ: ‘मृत्यु से मृत्यु को प्राप्त होता है’ ऐसा कहकर श्रुति ने दोष भी बतलाया है। मनुष्य माया से ठगा जाकर ही संसार में नानात्व देखता है।
~ अपरोक्षानुभूति
क्या जीव की जीवन यात्रा सिर्फ़ मृत्यु से मृत्यु की यात्रा है?
मृत्यु को कैसे समझें?
साधना में मृत्यु की समझ होना क्यों ज़रूरी होता है?
हर समय मृत्यु का ध्यान कैसे रखें?
अपरोक्षानुभूति को कैसे समझें?
संगीत: मिलिंद दाते